कमलेश लट्टाप्रधान सम्पादक, मो. 89551 20679 आरोपों की बिजलियां चमकी, फसादों के बादल गरजे, अफवाहों की बारिश हुई, सर्दी से गरमी, गरमी से वर्षा आई और बीत गई पर कोरोना नहीं बीता। आंकड़ों के दण्ड कम से ज्यादा होते रहे और सौ से हजार तथा हजार से लाखों में बदल गए पर उसे खत्म करने […]आगे पढ़े
कमलेश लट्टाप्रधान सम्पादक, मो. 89551 20679 ठहरा हुआ देश, शहर और गांव, सूनी सड़कें, धड़कते दिल, थरथराती सांस, वीरान आस्मां, सहमे ठिठके लोग और हवाओं में तैरते लाखों लाख सवालों के बीच में पिछले दिनों कृष्ण ने अपना जन्मदिन मनाया और देश ने भी अपनी स्वतंत्रता का जन्मदिन मनाया। कृष्ण की जिन्दगी को एक दर्शक […]आगे पढ़े
मो. 89551 20679 शहरों के बन्द में वीरानी पसरी पड़ी थी उसी समय मानवों के बढ़ते सैलाब में देश की महंगी चौड़ी सड़कें उफनी पड़ी थी, ऐसे खौफनाक दिनों में दो तारीखें ऐसी आई जिसमें लगा यदि ये नहीं होती तो दुनियां कैसी होती? ‘मदर्स डेÓ, मां का दिन। हम अपनी मां को सम्मान देने […]आगे पढ़े
तू धरती है, धैर्य तेरा मिजाज है, विस्तार तेरा वस्त्र है, हवाएं तेरी सांसें हैं, नदियों का बहाव तेरी रक्त की शिराएं हैं। सूर्य, चन्द्र दोनों तेरी आंखें हैं, वन तेरा सौन्दर्य है तो हरे-भरे मैदान तेरी वेदी की बिछावन। सब कुछ तुझसे और तुझमें ही तो है। हमारी आशाएं, हमारा जीवन, जीवन की धड़कन […]आगे पढ़े
एक मां ने एक युद्ध सघन संघर्ष के बाद आखिर जीत लिया। ताकत कहां से मिली? बेटी के उस टूटे-फूटे शरीर की कन्दराओं से फुसफुसाहट में कहे गए अन्तिम शब्द, ‘मां उन्होंने बहुत मारा, मां बहुत दर्द हो रहा हैÓ और खून की उल्टी और डॉक्टरों का मां की आंखें बंद कर उस दर्द भरे […]आगे पढ़े
कमलेश लट्टा प्रधान सम्पादक, मो. 89551 20679 घर आंगन और खलिहानों में होली के ढोल बजने लगे थे। सर्दी को करीब-करीब विदा कर चुके थे और होली थम्ब रोपा जा चुका था। महुआ टपकने को तैयार था। आम की बोर महक उठी थी। तभी हवाओं में जहर की तरह एक भयानक महामारी ने हिन्दुस्तान के […]आगे पढ़े
कमलेश लट्टा प्रधान सम्पादक, मो. 89551 20679 पूर्व वैदिक युग की आध्यात्मिकता को जब पढ़ रही थी तो दो स्त्रियों ने मुझे आकर्षित किया। पहली स्त्री थी, त्वष्टा की पुत्री सरण्यू , जो विश्वान की पत्नि एवं यम और यमी की माता थी। दूसरी स्त्री थी अदिति, जो आदित्यों की माता थी। अदिति अनन्त आकाश […]आगे पढ़े
समां तितर पंछी बादलों से भरा पड़ा है। भेड़ की पीठ जैसे ये बादल ठीक नौ माह बाद लौटेंगे और जमीन को बारिशों से भर देंगे। हवाएं इस दिशा से उस दिशा की ओर चलने लगी हैं और शाखों से पत्ते गिरने लगे हैं, तो मन ने दिल में झांका, सब कुछ पीला-पीला है और […]आगे पढ़े
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