सफलता की सीढ़ी…आशय का सिद्धांत

 सफलता की सीढ़ी…आशय का सिद्धांत

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सफल होने की महत्वाकांक्षा लिए आगे बढ़ता है। वर्तमान में व्यक्ति के लिए समाज में प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, भौतिक सुख सुविधा तथा अपने कार्यक्षैत्र में वर्चस्व ही सफलता की परिभाषा है। अक्सर लोग आर्थिक सुदृढ़ता को ही सफलता मान लेने की त्रुटि कर बैठते हैं। बहरहाल व्यक्ति की मानवता का आशय उसके सफल होने से है अर्थात प्रत्येक व्यक्ति का जीवन सफल होने के आशय से ही मापा गया है। फिर सफलता में इतनी असमानता क्यों? यदि व्यक्ति का आशय सफलता प्राप्त करने का है तो चूक कहां हो गई ….? चूक व्यक्ति के आशय की ना होकर उसके द्वारा सफलता को परिभाषित करने में हुई है और यदि आपके द्वारा सफलता के सिद्धांत के आशय को अपनाने में गलती हो गई हो, आपके द्वारा आशय गलत हो गया ऐसी सूरत में आपके प्रयत्न भी गलत सिद्ध होंगे।
आशय के सिद्धांत के अनुसार आपका आशय शुद्ध तभी माना जाएगा जब आपके द्वारा सफलता को सही परिभाषित किया जाएगा। सदियों से व्यक्ति सफलता को अपने आशय अनुरूप परिभाषित करने में जुटा है। उदाहरण के तौर पर यदि मेरा आशय धन कमाने और जरूरी सुख सुविधाएं अर्जित करना है तो ऐसी स्थिति में आर्थिक दृष्टिकोण से वह सफल होना चाहता है जो गलत नहीं है। उसका आशय धन अर्जित ही रहेगा, वही उसकी सफलता असफलता का मानदंड है। यहां तक उसके आशय में कोई त्रुटि नहीं है परन्तु उसका आशय तब खंडित हो जाता है जब उसके द्वारा धन प्राप्ति के आशय में खोट आ जाती है और उसके प्रयत्न गलत दिशा में लगने लगते हैं क्योंकि उसका एकमात्र आशय धन कमाना है।
वह येन केन प्रकारेण धन अर्जित करना चाहता है और इस प्रयास में वह गलत राह और तरीके भी चुनने में संकोच नहीं करता। तब व्यक्ति का आशय गलत हो जाता है। एक और उदाहरण जो वर्तमान में फिट बैठता है, वह है प्रसिद्धि प्राप्ति का आशय। इस सोश्यल मीडिया, इन्टरनेट व डॉट कॉम की दुनिया में इन्टरनेट ने युवाओं की नब्ज को पकड़ लिया है, वह उन्हें प्रसिद्धि की फंतासियों के लुभावने सपने दिखाने से चूक नहीं रहे हैं और उन्हें सोश्यल मीडिया पर ऐसे – ऐसे मंच प्रदान कर रहे हैं जो किसी भी नौजवान को लुभाएंगे। यहां प्रसिद्धि प्राप्त करना कोई गलत आशय नहीं है परन्तु उसे पाने के आशय और उस आशय के अनुरूप प्रयास चिन्तनीय हैं क्योंकि स्वच्छ आशय से निर्धारित लक्ष्य और उससे प्राप्त सफलता के लिए सही प्रयत्न ही बोधित सफलता तक पहुंचा सकते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि, शुद्ध स्वच्छ सच्चा आशय क्या है। सच्चे आशय से अभिप्राय उस कार्य से है जिसको करने से मन शांत, प्रसन्न और रूचिकर लगे, जो मन को विचलित न करे परन्तु प्रश्न यह भी उठता है कि, जिस व्यक्ति द्वारा गलत आशय से अपना लक्ष्य निर्धारित किया गया हो उसे उसके कार्य में भी यही गुण दिखेंगे। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि, क्या व्यक्ति अपने अशुद्ध आशय को भांप सकता है? इसका उत्तर है, ‘हांÓ। यदि व्यक्ति के आशय में त्रुटि है तो वह आलौकिक शक्ति ईश्वर की कृपा महसूस नहीं कर पाएगा। उसका अवचेतन मन कभी शान्त नहीं रहेगा, उसके कार्य की अनुभूति उसे कचोटेगी, मन विचलित और शुष्क रहेगा। उसका मन ऐसे कार्य से आनंदित नहीं होगा जो स्पष्ट रूप से इंगित करेगा कि, आपके आशय द्वारा चुना गया मार्ग ठीक नहीं है।
सफलता की सीढ़ी चाहती है कि, व्यक्ति अपने आपको संतुलित रखे क्योंकि बाह्य दुनिया कई तरीके की भटकन से भरी है और व्यक्ति से आपेक्षित है कि, वह अपने कर्म का आशय सदैव सच्चा और स्वच्छ रखे। स्वस्थ मस्तिष्क शान्त मन को प्रतिबिम्बित करता है और शान्त मन सच्चे आशय की नींव है जो व्यक्ति को गलत करने नहीं देती।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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