सफलता की सीढ़ी…सकारात्मकता को जीवन का हिस्सा बनाएं

 सफलता की सीढ़ी…सकारात्मकता को जीवन का हिस्सा बनाएं

व्यक्ति से आपेक्षित है कि, वह अपनी कल्पनाओं से सकारात्मक मन को उपजाए, उपजाऊ मन व्यक्ति के जीवन में विकल्प के मार्ग खोलता है विशेषकर व्यवसाय में, व्यक्ति में असंभव को भी संभव करने का माद्दा होना चाहिए क्योंकि जो आप सोचते हैं वही बनते हैं। व्यक्ति के जीवन को कोई काल परिस्थिति या व्यक्ति उसके सपनों को साकार करने से नहीं रोक सकता परन्तु रोकता तो व्यक्ति का मन है और मन में उत्पन्न उसकी सोच, जो उसके अपने ख्वाबों का पीछा करने से रोकते हैं। यहां मन की बात निकली है तो हमें यह स्मरण रहे कि, व्यक्ति को उसके सपनों को हकीकत बनाने का डर उसके मन में उत्पन्न नकारात्मक विचारों से होता है इसलिए व्यक्ति को अपने सपनों की उड़ान ह्रदय में भरने की आवश्यकता है।
व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु उसके मन में उत्पन्न नकारात्मक सोच पर विश्वास करने वाले रवैये से होती है जो एकमात्र अवरोधक है आपके और सफलता के बीच का। सफलता की बाधा को दूर करने का एकमात्र ढाल बाधा को देखने का दृष्टिकोण और प्रतिक्रिया करने का रवैया है क्योंकि सकारात्मक सोच और रवैये से लिए गए फैसले पर क्रियान्वयन कभी व्यक्ति को नकारात्मक परिणाम नहीं दे सकता और इसके विपरीत नकारात्मक सोच और क्रियान्वयन कभी सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकते।
सकारात्मक सोच और रवैये को जीवन में अपनाने के लिए व्यक्ति से आपेक्षित है कि, वह खुशी, रूचि, प्यार और संतोष जैसे गुणों को अपने जीवन में अपनाए। यह वह सकारात्मक भाव है जिनका प्रभाव व्यक्ति पर और फलस्वरूप उसकी कार्यप्रणाली पर पड़ता है जो उसके व्यवहार में परिलक्षित होता है। हम सकारात्मक टिप्पणी या वार्तालाप को यह सोचकर कि, इसका दुष्परिणाम निकलेगा स्वीकार नहीं करते जिसका परिणाम हमारे द्वारा नकारात्मक प्रतिउत्तर होता है जो उसकी उपलब्धि को धूमिल कर देता है। किसी की टिप्पणी का उत्तर सदैव सकारात्मक होना चाहिए जो आपके भीतर सकारात्मकता का संचार करेगा। सकारात्मक व्यवहार व्यक्ति सर्वप्रथम अपने आप से करता है फलस्वरूप उसका प्रतिबिंब बाह्य फलीभूत होता है।
मानव मन कभी शांत नहीं हो पाता ना ही स्थिर रह पाता है, यह समस्या है मन की। यह जीवन का सत्य है कि, जहां शांति नहीं वहां कुछ शांत नहीं रह सकता। व्यक्ति के मन में विचार लहरों की भांति निरंतर उफनते रहते हैं फलस्वरूप मन विचलित रहता है, किसी भी भावना को समझने के लिए स्थिर और शांत मन होना आवश्यक है क्योंकि व्यक्ति द्वारा उपयोग में लिए गए शब्द और उनसे उत्पन्न प्रतिक्रिया तथा प्रतिक्रिया के अर्थों से दोषारोपण में ही उलझ कर रह जाता है और वह सत्य को समझ नहीं पाता क्योंकि सत्य तो शांत मन में विद्यमान है। जैसे चन्द्रमा उसी जल में दिखता है जो जल शांत हो, स्थिर हो अर्थात स्थिर शांत मन में ही सकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं। जैसे शक्ति प्राप्त करने से व्यक्ति शक्तिशाली नहीं बनता बल्कि व्यक्ति शक्तिशाली बनता है उस शक्ति को सम्मान देने से तात्पर्य शक्ति को सकारात्मक रूप और सच्चाई व परोपकार के लिए उपयोग में लेने से। इस प्रकार सकारात्मक सोच होने मात्र से व्यक्ति सकारात्मक नहीं होता अपितु वह सकारात्मक होता है सकारात्मक विचारों से।
सफलता की सीढ़ी चाहती है कि आप सकारात्मकता को जीवन का हिस्सा बनाएं क्योंकि सकारात्मक विचारों की अभिलाषा ही बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण करती है। अपनी संगत सकारात्मक लोगों की बनाइये क्योंकि नकारात्मक संगति व्यक्ति के अच्छे चरित्र को दूषित कर देती है। सकारात्मक सोच आपके दृष्टिकोण को बदलने का जज्बा रखती है। याद रहे, यदि आप सकारात्मक रहे तो आपके चारों ओर का वातावरण भी सकारात्मक रहेगा।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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