यहां चापलूसी में सामथ्र्य की जरूरत है

 यहां चापलूसी में सामथ्र्य की जरूरत है

रामस्वरूप रावतसरे
हरिया
अखबार के एक समाचार पर इतना विचलित हुआ कि उसके दिमाग ने काम करना ही बन्द कर दिया। उसे अपने बच्चों का चेहरा हजार बार कोशिश करने पर भी याद नहीं आ रहा था। तभी उसकी पत्नी ने आवाज दी पर उसके कान कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। उनसे सीटी की आवाज निकल रही थी। वह भी सरकारी नल की तरह। पत्नी ने दहाड़ लगाई तब कहीं जाकर हरिया को होश आया कि उसे कोई पुकार रहा है। वह अनमने मन से उठा और रसोई की ओर चल दिया।
उसके बाद उसकी पत्नी ने क्या कहा उसे कुछ समझ नही आया और पुन: वह अपनी चारपाई पर आकर बैठ गया। चुंकि सुबह का ही समय था। पड़ौस में रहने वाला चिवतन हरिया को देख कर उसके पास आ गया। हरिया ऐसे बैठा था कि जैसे उसका बहुत बड़ा नुकसान होने वाला हो। चितवन ने हरिया से पूछा ‘ऐसे मुंह क्यों बना कर बैठे होÓ हरिया भड़ककर बोला तुम इस समाचार को पढ़ो जहां बिना योग्यता के ही प्रिंसीपल बना दिये गये हैं। चितवन ने समाचार को पढ़ा और हो हो करके हंसा, उसकी हंसी इस प्रकार की थी कि अन्दर से हरिया की पत्नि चिल्लाई ‘क्या! दौरा पड़ गया क्याÓ?
चितवन गम्भीर होता हुआ बोला हरिया तुम जिस चिन्ता में खो रहे हो तुम्हारी चिन्ता जायज लगती है। जिस पद पर बैठाया जा रहा है उसकी योग्यता तो होनी चाहिये। बिना योग्यता के कैसे चलेगा। पर हरिया तुम यह भी जानते होंगे कि, हमारे यहां योग्यता कबाड़ में पड़ी सड़ती रहती है। चापलूसी का बोलबाला है, जो योग्यता से भी बड़ी योग्यता बन कर बैठी है। इसे ही सब कुछ मान लिया गया है। जब मंत्री बिना योग्यता के बन सकते हैं तो फिर इनके लिये कुछ कहना, अपना समय बरबाद करना है। हरिया बोला चाचा इनसे बच्चों का भविष्य जुड़ा है।
चितवन ने कहा ‘जो बिना योग्यता के मंत्री बने है उनसे देश प्रदेश के साथ हम सब का भविष्य जुड़ा है। जब देश प्रदेश की नीतियां जनता के हित में नहीं होगी तो जनता का हित किस प्रकार हो सकेगा। यह ‘बिना योग्यताÓ की बात सरकारी कर्मचारियों का ही काम है। जिसने किया वह भी कर्मचारी था और अब जो हुल्लड़ मचवा रहे हैं वह भी कर्मचारी हंै और जिन्हें लेकर हुल्लड़ हो रहा है वे भी कर्मचारी हैं।
हरिया इन सब की दाल का पानी समान मात्रा में हरे रंग का है। इनका कुछ भी नहीं होने वाला। तुम सोचो कि, तुम्हें अपने बच्चों को किस प्रकार के संस्कार और शिक्षा देकर आगे बढ़ाना है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हंै जहां मां बाप ने अपने बच्चों को शिक्षा और संस्कार दिये वे बच्चे आगे बढ़े क्योंकि व्यवहारिक जीवन में स्कूली शिक्षा कम और घर की शिक्षा अधिक काम आती देखी गई है। बच्चे पर असर पहले घर के वातावरण का ही पड़ता है। जिस बच्चे में संस्कारों की श्रेष्ठता है उसके आगे कैसा भी वैचारिक भूचाल आये, कैसी भी कठिन परिस्थति हो, वह अपना आगे बढऩे का रास्ता बना लेता है। इसलिये जो कुछ हो रहा है उसमें सब्र करो। फिर हरिया हमारा जो स्तर है उसके अनुसार अखबारों के समाचारों को इतना गम्भीर हो कर नहीं पढऩा चाहिये। यह हमारे स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है। यह मुद्दा सरकारी स्तर के उस गलियारे तक ही रहने दो जहां श्रैष्ठ सोच और कर्मठता नहीं चापलूसी और चमचागिरी ही सामथ्र्य का काम करती है। इस काम में समर्थ लोग बिना योग्यता के ही बहुत कुछ प्राप्त कर रहे हैं।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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