मांग सरकार से, अंगुली जनता की नाक में क्यों?

 मांग सरकार से, अंगुली जनता की नाक में क्यों?

रामस्वरूप रावतसरे
हरिया अखबार को देखकर इस विचार में डूबा था कि हमारे देश में प्रजातन्त्र है। वह प्रजा द्वारा प्रजा के लिए है। यहां लोगों को सभी प्रकार के अधिकार मिले हुए हैं। जिनको अपना कर प्रजा के अगुवा अपनी मांगों को मनवाने के लिये सारे हथकंडे अपनाते हैं।
केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के लिए बनाए गए कानून के विरोध स्वरूप तथाकथित किसान सड़कों को रोक रहे हैं, रेल पटरियों पर टेण्ट लगा रखे हैं। जैसे कानून बनाने वाले इन्हीं रास्तों से गुजरते हो। ऐसे ही राजस्थान में गुर्जरों ने अपनी मांगों को लेकर रेल पटरियों को रोक लिया है। इनके इस प्रकार करने से सैकड़ों गाडिय़ों को बन्द करना पड़ा है या फिर उनके रूट बदलने पड़े हैं। पंजाब में किसान आन्दोलन के कारण लगभग रेल गाडिय़ां बन्द है जिससे कई औद्योगिक इकाईयों के उत्पादन और आम जनजीवन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। यह विडम्बना भी देखिये कि पंजाब में किसान आन्दोलन को पंजाब सरकार भी खुल्ला समर्थन दे रही है।

हरिया के दिमाग में यह बात नहीं बैठ रही थी कि केन्द्र सरकार ने किसानों के हित के लिए कानून बनाए हैं तो यह किसान विरोधी कैसे हो सकता है! इन कानूनों के लागू होने पर किसान किस प्रकार बर्बाद हो जायेगा! विरोध करने वाले कहते हैं हम नया और किसान को आबाद करने वाला कानून बनाएंगें। जब इन्हें यह सब अधिकार है तो फिर सड़कें और रेल पटरियों को बाधित क्यों कराया जा रहा है। जिनसे कानून बनाने वाले नेता नहीं आम जनता का आना जाना अधिक होता है। उसमें वह किसान भी शामिल है जिसको आगे करके सफेदपोश नेताओं द्वारा आन्दोलन किया जा रहा है।
ऐसे ही राजस्थान में गुर्जरों की लडा़ई सरकार से है। कायदे से तो उन्हें सरकार के बैठने के स्थान को घेरना चाहिये लेकिन वे वहां बैठे है और उस स्थान को बाधित कर रखा है जहां से शायद ही कोई इनकी मांगों का विरोध करने वाला नेता गुजरता हो। चुंकि हमारे यहां प्रजातन्त्र है इसलिए किसी भी प्रकार का आन्दोलन हो, किसी का कैसा भी विरोध हो सबसे पहले प्रजा की नाक में अंगुली डाली जाती है, उसी को ही रूलाया जाता है। उसे ही कहीं आने जाने से रोका जाता है, बाजार बन्द करा दिये जाते हैं। हर वह हथकण्डा अपनाया जाता है जिससे जनता को परेशानी खड़ी हो। इन तथाकथित आन्दोलनों को लेकर सरकार और उसके नुमाईन्दे दूर खुली हवा में खड़े मंद मंद मुस्कुराते रहते हैं। जब इन्हें लगने लगता है कि जनता परेशान हो चुकी है तथा जनता की सुविधार्थ बनाई गई सड़कें तथा रेल मार्ग एवं अन्य सार्वजनिक सम्पति को करोड़ों का नुकसान हो चुका है। तब ये आन्दोलनकारियों से वार्ता शुरू करते हंै। सामथ्र्य की अजीब व्यवस्था है हमारे प्रजातन्त्र में।
हरिया इस ना सुलझने वाली पहेली को सुलझाने में लगा था। चितवन आया, जो किसी धरने में बैठकर आ रहा था। बोला – हरिया ऐसे कैसे मुंह बनाकर बैठे हो। हरिया बोला – चचा यह कैसा खेल है कि मांग सरकार से, रास्ता रोक रहे हैं जनता का। ये आन्दोलनकारी जहां सरकार बैठती है वहां जाकर अपना विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं करते। चितवन बोला-हरिया प्रजातन्त्र में यही होता है। मांग सरकार से परेशानी जनता को। जनता परेशान होगी तभी उसके द्वारा चुने गए नुमाईन्दे आन्दोलनकारियों की ओर देखेगें। हरिया इन्हें जनता की परेशानी से ज्यादा अपने वोट बैंक की चिन्ता रहती है। डूंगरपुर में जो आन्दोलन करा रहे थे उनका क्या हुआ लेकिन जनता का बहुत कुछ हुआ। उसके घाव शायद ही भरे जांय। दिल्ली में शाहिनबाग के क्या हालात थे और उसके परिणाम क्या निकले। सबके सामने हैं लेकिन इन तथाकथित आन्दोलनों को कराने वाले या उन्हें उकसाने वालों का आज तक कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि हमारे यहां प्रजातन्त्र है।
हमारे तथाकथित अगुवा संविधान को अपना रक्षा कवच बना कर जनता के अधिकारों की होली जलाते हंै। उसमें अपनी रोटियां सेकते हैं। जनता का क्या है, चुनाव आने पर उसे कुछ भी याद नहीं रहता। फिर चुनाव भी जात बिरादरी के आधार पर होने लगे हैं। जो आज जनता के लिए कांटे बने हैं। वे लोग चुनाव आने तक राजनीतिक पार्टियों के लिए कर्मठ कार्यकर्ता का रूप ले लेते हंै। इसलिए हरिया इस विषय पर अधिक माथापच्ची मत करो। मेरे साथ चला करो, चाय नाश्ता और दो समय का भोजन आसानी से उपलब्ध हो जाता है। बस भीड़ में कभी हाय हाय करनी है तो कभी जिन्दाबाद के नारे लगाने हैं। हरिया ने अपने माथे का पसीना पोंछा और एक बुझी बुझी सी श्वांस लेता हुआ चितवन का मुंह ताकने लगा।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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